किस मुहब्बत से तुम्हें ख़त आजकल लिखता हूँ
क्या समझ पाओगे तुम किस रंग में डूबा हूँ मैं
मेरे बारे में गुलों की राय भी ले लीजिये
लोग काँटा ही कहेंगे उनको तो चुभता हूँ में
मजतरिब कर देता है फिर जाने क्यों शौक सफर
जब किसी मंजिल पे पल भर के लिए ठहरा हूँ में
रक्स गाहों में जलेगी शमा आख़िर कब तक
आ तुझे लेकर अँधेरी राह पर चलता हूँ मैं
मुझ से करता है हमेशा दोस्तों जैसा सलूक
क्यों खफा होता है इसको दोस्त जब कहता हूँ मैं
क्या छपायेगा कोई मुझसे अपना हाल ऐ दिल
अब तो चेहरों को किताबों की तरह पढता हूँ मैं
ठोकरों ने इस कदर मुझ को नवाजा है पयाम
चोट जब भी लगती है मुस्करा देता हूं मैं
"ye tūl arz-o-sama to bahut hi kam hai payam
ये तूल अर्ज ओ समा तो बहत ही कम है पयाम
tere shaūr-e-takhyyul ki wusaton ke liye
तेरे शउर ए तखय्यूल की वूस्अतों के लिए "
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