"ye tūl arz-o-sama to bahut hi kam hai payam
ये तूल अर्ज ओ समा तो बहत ही कम है पयाम
tere shaūr-e-takhyyul ki wusaton ke liye

तेरे शउर ए तखय्यूल की वूस्‍अतों के लिए "

मैं अपनी कि‍ताब शउरे तखय्यूल के गजलों के ब्‍लाग में आपका खैर मकदम करता हूं - Payam Ansari


(11)

कदम जब घर से तुम बाहर निकालो
पता मौसम के बारे में लगा लो
जवानी कर रही है अब तकाजा
निगाहों में कोई सपना सजा लो
मेरा साया मेरा साया नहीं है
घटा लो तुम उसे चाहे बढा लो
वफाओं पर है जिनकी नाज तुमको
किसी दिन तुम उन्‍हें भी आजमा लो
बिछा लो मेज पर पत्‍थर के टुकडे
किसी गुलदान में कांटे सजा लो
सभी बरबाद करने पर तुले हैं
बचाने की कोई सूरत निकालो
तुम्‍हारी जिंदगी खुद है समंदर
उसी में डूब कर मोती निकालो
जो खाई पाटना मुमकिन नहीं तो
वहां एक खूबसूरत पुल बना लो
न जाने कल का सूरज क्‍या दिखाए
पयाम इस शाम को कल पर न टालो

(10)

अपना दामन तो बचा ले कोई
फिर मेरा नाम उछाले कोई
हर समंदर में हैं जंगी बेडे
कश्‍ती ए नूह भी डाले कोई
ये तो मैखाने का नहीं दस्‍तूर
कोई बहके तो संभाले कोई
दिल ही जब टूट चका है यारों
तख्‍ता ए मश्‍क बना ले कोई
अपनी रफतार न बदलेगी जमीं
आसमां सर पे उठा ले कोई
उसकी आंखों से छलकती है शराब
तश्‍नगी अपनी बुझा ले कोई
मैं तो आवारा ख्‍वाब हूं यारों
अपनी पलकों पे सजा ले कोई
सब तो अपने हैं गैर कोई नहीं
डूबता हूं मैं बचा ले कोई
ये जवानी की है दहलीज पयाम
कैसे आंचल को संभाले कोई

(9)

उसका अब रूप रंग क्‍या होगा
बोलता अंग अंग क्‍या होगा
दिलकशी जिसकी हो उदासी में
उसकी खुशियों का रंग क्‍या होगा
जी रहा है तेरे फिराक में जो
उसके जीने का ढंग क्‍या होगा
कैंचियां आसमां में चलती हैं अब
उडा कर पतंग क्‍या होगा
जामा पोशी फरेब लगती है
कोई ऐसा भी नंग क्‍या होगा
जीतने पर भी हार अपनी है
छेडकर तुम से जंग क्‍या होगा
सात रंगों की इस धनक में पयाम
देखिये अपना रंग क्‍या होगा

(8)

वह जो दुनिया से किनारे थे बहुत
उनके ही चाहने वाले थे बहुत
गर चे कि कम मेरे इरादे भी न थे
जिंदगी तेरे तकाजे थे बहुत
उनकी आंखों को बशारत न मिली
जिनकी दुनिया में उजाले थे बहुत
अपना घर कोई नहीं था लेकिन
हम फकीरों के ठिकाने थे बहुत
इश्‍क की आखिरी मंजिल न मिली
कुछ मकाम और भी आगे थे बहुत
कोई वायदा न तकलम न पयाम
उनकी आंखों के इशारे थे बहुत

(7)

साकिया अब न पिला काफी है
तेरी आंखों से पया काफी है
जो गया हाथ से क्‍या गम उसका
जो मुकद्दर से मिला काफी है
इस कदर सूख चुके हैं पत्‍ते
एक हल्‍की सी हवा काफी है
आप खुद सारी खुदाई रखिये
मुझको बस मेरा खुदा काफी है
आह में होती है आवाज कहां
उसकी खामोश सदा काफी है
तुम न आये कोई खुशबू लेकर
मुझको गुलशन की हवा काफी है
किस कदर लोग हैं घबराये हुये
शहर में खून बहा काफी है
लुट गये आप शराफत में पयाम
चलिए जो कुछ भी बचा काफी है

(6)

किसी गम से हो जो न आश्‍ना कोई खार जिसको छिपा न हो
कभी उसके दिल से भी पूछिये ये खुशी ही उसकी सजा न हो
मेरे आशियां को जला के भी तेरे दिल की आग बुझी नहीं
मेरे दोस्‍त मुझको ये फिक्र है कहीं हाथ तेरा जला न हो
ये उडा-उडा सा है रंग क्‍यों ये बुझी बुझी सी नजर है क्‍यों
जरा दिल में अपने तो झांक ले कोई चोर दिल में छुपा न हो
उसे कैसे मान लू बागबान कि चमन में फसले बहार है
जहां कोई पेड हरा न हो जहां कोई फूल खिला न हो
कभी अपने बाजूओं के जोर पर किसी नातवां पे न ज़ुल्‍म कर
तेरे साथ सारा जहां सही कहीं उसके साथ खुदा न हो
न जबां ही तेरी खुली कभी न नजर को तेरी जबां मिली
ये पयाम को जो नसीब है कहीं तेरे दिल की सदा न हो

(5)

है फलक पे मेरी नज़र अभी हैं सितारे मेरी निगाहों में
कोई चांद है मेरा हमसफर न जला दे मेरी राह में
तेरा चेहरा अब भी गुलाब है अभी ठहरा तुझ पे शवाब है
अभी पुरकशिश तेरा हुस्न है अभी है असर मेरी चाह में
तेरा साथ मैंने निभाया यूं कि मिसाल बन गई दोस्‍ती
ये शउरे होश की बात थी बडा जब्‍त दिल था निबाह में
यहां राह हक से फिसल गये जिन्‍हें जहद तकवा पे नाज था
इसे मानिये कि न मानिये बडी लज्‍जतें हैं गुनाह में
इसे मेरी जान अजीज है चलो सौंप दें इसे जिंदगी
मुझे कातिलों से बचा के जो करे कत्‍ल अपनी पनाह में
ये हसीन ख्‍वाब ये हसरतें जो यकीं है दिल में पयाम के
न है बादशाहों के ताज में न गदागरों की कलाह में